क्या हो गया मीडिया को...
कुलवंत
पिछले बीस दिनों से राजस्थान गुर्जर अंदोलन की आग में झुलस रहा है, जिसका असर रेलवे विभाग के कारोबार एवं देश की आर्थिक व्यवस्था पर भी पड़ रहा है. वहीं दूसरी तरफ उत्तर भारत की तरफ जाने वाले लोगों को दिन रात यह चिंता रहती है कि कहीं उनकी गाड़ी राजस्थान में जाकर तो रुक न जाएगी. लेकिन हैरानी की बात है कि हमारे मीडिया की नजर बस एक लड़की की हत्या पर टिकी हुई है, वो आरुषी हत्याकांड. बेशक इस बात को आज एक महीना गुजर चुका है और इस मामले की जांच सीबीआई के हाथों में पहुंच चुकी है. फिर भी न्यूज चैनलों पर इस हत्याकांड को बहुत ज्यादा दिखाया जा रहा है, आपके जेहन में सवाल तो उठा होगा आखिर क्यों, मीडिया इस मामले को इतना उठा रहा है. क्या भारत में ये कोई पहली हत्या है, इस पहले कोई लड़की इस दुनिया को अलविदा कहकर नहीं गई?हर रोज देशभर में सैंकड़ों हत्याएं होती हैं, जिनमें ज्यादातर हत्यारे अपने ही होते है, मगर वो खबर तो कभी टैलीविजन पर नहीं आई, कल की बात को ही ले लो, पटियाला में एक व्यक्ति ने अपनी बहन एवं अपने जीजा को मौत के घाट उतार दिया, इसके अलावा पुलिस के हाथों बे-अबरू हुई रोहतक की सरिता ने आत्महत्या कर ली थी, मगर वो मामला मीडिया में क्यों नहीं आया. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण पैसा. आज मीडिया लोगों को इंसाफ दिलाने के लिए नहीं बल्कि पैसा कमाने पर अधिक ध्यान देता है. अगर 'आज तक' ने एक खबर को बढा चढाकर पेश कर दिया तो लाजमी है कि दूसरे चैनलों पर वो खबर और बढ़ाचढ़ाकर पेश की जाएगी, क्योंकि प्रतिस्पर्धा के इस युग में, हर कोई खुद को आगे दिखना चाहता है, चाहे वो खबर काम की हो चाहे न, निठारी कांड, किडनी कांड कई कांड हिंदुस्तान की धरती पर घटे एवं उनके आरोपियों का क्या हुआ, यह मामले कहां तक पहुंच गए, किसी मीडिया ने नहीं उठाया. सबसे पहली बात जब तक कोर्ट किसी को दोषी नहीं ठहरा देती तब तक मीडिया को किसको कातिल हत्यारा कहने का कोई हक नहीं, मगर आज का मीडिया तो आदमी की इतनी बदनामी कर देता है, बेशक वो आदमी कोर्ट से बरी भी हो जाए तो लोग उसको दोषी ही मानेंगे. इतना ही नहीं, इस हत्याकांड के एक दिन बाद तो मीडिया ने इस हत्या के पीछे अवैध शारीरिक संबंधों का जिक्र किया गया था. जिसके चलते एक चैनल पर मान हानि का दावा भी ठोक दिया गया है.जरूरत है आज मीडिया पर लगाम कसने की, इतनी आजादी भी अच्छी नहीं, आरुषी मामले में ही देख लो जो कल तक मीडिया आरुषी के पिता के बारे में उलटा सीधा बोल रहा था, आज उसने कृष्णा को पकड़ लिया, जबकि अभी तक सीबीआई के हाथ कोई खास सबूत नहीं लगे जो कृष्णा को हत्यारा साबित कर दें, फिर मीडिया इस मामले में हद से ज्यादा कयास लगा रहा है.मीडिया की जिम्मेदारी है, हर खबर समाज तक पहुंचाए, न कि टीआरपी बढ़ाने के लिए एक ख़बर पर जोर दिया जाए. इस ख़बर पर इतना जोर दे दिया गया कि एकता कपूर जैसी सास बहू के सीरियल में इस हत्याकांड को शामिल करने तक की बात करने लगी थी, मीडिया को अपनी टीआरपी बढ़ाने के साथ साथ, आरुषी के रिश्तेदारों, दोस्तों एवं माता पिता के दिल पर क्या बीत रही है, इस बात का ख्याल करना चाहिए.
Tuesday, August 5, 2008
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5 comments:
क्रिपया नया लिखें
मैं मानता हूँ कि सबसे जादा मीडिया को जिम्मेदाराना होना चाहिए. ज़ाहिर चिंतन. शुर्किया.
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यहाँ भी पधारे;
उल्टा तीर
रोहतक की सरिता ने आत्महत्या कर ली थी, मगर वो मामला मीडिया में क्यों नहीं आया-- ये लिखने से पहले काश आपने कोई टीवी चैनल देखा होता... या अखबार पढ़ा होता(चाहे हिंदी का, या फिर अंग्रेजी का) तो मुमकिन था कि आप सही तथ्यों के साथ सामने आते। आपने जितनी भी घटनाओं का जिक्र किया है, वो सभी किसी न किसी न्यूज चैनल की खबर बनीं हैं... पता नहीं आप किस दुनिया में रहते हैं। जागो बंधु, पांच अगस्त 2008 को गुर्जर आंदोलन नहीं, जम्मू-कश्मीर में अमरनाथ जमीन विवाद ताजा खबर है। मेरे ख्याल से आपको नियमित रूप से अखबार पढ़ने या कोई चैनल देखने की आदत डाल लेनी चाहिए..इससे सामान्य ज्ञान बना रहेगा। इस सलाह को अन्यथा न लेना मित्र।
टीआरपी सिर्फ इलैक्ट्रानकि को ही नहीं बल्कि पाठक संख्या प्रिंट को भी चाहिए। साथ में अपमार्केट रीडरशिप या ब्यूरशिप का भी ध्यान रखना होता है ताकि विज्ञापनदाताआें आैर एजेंसियों के सामने यह तथ्य प्रस्तुत किया जा सके कि हम सबसे ज्यादा एेसे लोगों को उल्लू बनाने में सक्षम हैं जिनकी जेब में माल है। एेसे में सरोकार की बात करना ही बेमानी है। चैनल भी धंधा करने को बाजार में उतरे हैं आैर प्रिंट भी। फिर चैनलों का ही रोना क्यों?
अरबिंद जी, खबरें तो सभी होती हैं फर्क सिर्फ यह है कि कोई दिनभर देखी जा सकती हैं तो कोई दो चार बार बाद ही बंद कर दी जाती हैं। अगर टीआरपी नहो तो क्या आप किसी चानल को बंद होते देखने का शौक रखते हैं। मित्र दुनिया में सही गलत सबकुछ है। करना बस यह है कि- सार-सार को गहि रहै, थोथा देहि उड़ाय।। मतलब सिर्फ थोथा पर नजर कम रखिए। अब ब्लाग खोला है तो निंदा की बजाए ऐसे विषयों पर खुद भी लिखिए। मैं थोड़ा बहुत ऐसा करता हूं। यकीन के लिए मेरे ब्लाग चिंतन का भ्रमण कर सकते हैं।
ये मेरे ब्लाग हैं---
http://apnamat.blogspot.com ( चिंतन )
http://chintan.mywebdunia.com
http://hamaravatan.blogspot.com
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