Tuesday, August 19, 2008

हिन्दी के लिए भी समय निकालिए प्रधानमंत्री

हिन्दी के लिए भी समय निकालिए मनमोहनजी
अरविंद कुमार सिंह
डा.मनमोहन सिंह ने केंद्रीय हिंदी समिति की 28वीं बैठक को संबोधित करते हुए अपने प्रधानमंत्री बनने के कुछ माह के बाद ही ,2 सितंबर 2004 को दावा किया था कि हिंदी जल्दी ही संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बन जाएगी। कई बार यह बात उन्होंने दोहराई। इसके बाद विश्व हिंदी सम्मेलन में भाग ले रहे दुनिया भर के लोगों को अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने अमेरिका की तारीफों के पुल बांधे और प्रतिनिधियों को अमेरिका में होने और महासभा कक्ष में बैठने को अहोभाग्य के रूप में निरूपित किया । भारत से भारी भरकम हिंदी सेवियों और स्वयंभू कई विद्वानो का शिष्टमंडल लेकर अमेरिका पहुंचे विदेश राज्य मंत्री आनंद शर्मा और डा। कर्ण सिंह ने भी घूम फिर कर जो कुछ कहा उसका सीधा अर्थ यही निकलता है कि सरका र के दावे महज कागजी ही है। हिंदी को विश्व भाषा के रूप में स्थापित करने और संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने में राजनीतिक इच्छाशक्ति का सर्वथा अभाव है। संयुक्त राष्ट्र की छह आधिकारिक भाषाएं अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पेनिश, रूसी, चीनी व अरबी हैं। अंग्रेजो को छोड़ दें तो बाकी भाषाऐं इस सूची में वहां की सरकारों की इच्छाशीलता और इस लक्ष्य के लिए चलाए गए व्यापक कूटनीतिक प्रयासों के चलते शामिल हो सकी हैं।
अगर बारीकी से गौर करें तो पता चलता है,यूपीए सरकार ने हिंदी को यूएन की भाषा बनाने की दिशा में कोई भी प्रयास नहीं िकया। किसी भी भाषा को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाए जाने की प्रक्रिया में नियमावली के नियम 51 में संशोधन करने के लिए महासभा की कुल सदस्यता में से आधे का अनुमोदन होना चाहिए। हर सदस्य देश का एक मत होता है। ऐसे में इस प्रस्ताव के लिए 191 सदस्यों में से 96 देशों का समर्थन भारत को चाहिए। लेिकन प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री या विदेश राज्यमंत्री के इस बीच में जितने भी विदेशी दौर रहे उसके भारी भरकम एजेंडे में कहीं हिंदी नहीं नजर आयी। इस तरह अब बचे चाँद महीने में यूपीए सरकार ऐसी कोई बड़ी कूटनीतिक मुहिम चला लेगी इसकी संभावना नहीं दिखती। इस तरह बात केवल संकल्प तक ही समाप्त हो जाएगी।
यह उल्लेख जरूरी है कि दक्षिण के तमिलनाडु राज्य में हिंदी विरोध को अपने सर्वोच्च एजेंडे में रख कर काफी बड़ा आंदोलन चलानेवाली पार्टी डीएम·के. के दबाव में यूपीए सरकार ने अक्तूबर 2004 में ही तमिल को समृद्द भाषा (क्लासिकल लैंग्वेज) का दर्जा दे दिया । इस फैसले के बाद तीन अन्य दक्षिणी राज्यों में कन्नड़, तेलगू तथा मलयालम को ऐसी ही हैसियत देने को घमासान मचा हुआ है । तमिलनाडु सरकार को भारत सरकार ने तमिल को समृद्द भाषा के रूप में प्रचारित प्रसारित करने के लिए 100 करोड़ रूपए भी दिए हैं।
1975 में नागपुर में हुए विश्व हिंदी सम्मेलन में हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा में स्थान दिलाने का संकल्प लिया गया था। इसके बाद से सभी सम्मेलनो में यह बात उठी और 2003 में भी इस बाबत ठोस आकार देने की आशा बलवती हुई। एनडीए सरकार में इस दिशा में काफी जमीनी काम शुरू हुए लेकिन यूपीए सरकार इस दिशा में एकदम उदासीन रही तथा इसने अभी औपचारिक प्रस्ताव तक पेश नहीं किया है। भारत में विदेश राज्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित एक विशेष समिति ने हिंदी के बारे में तीन बैठक की है।
केंद्रीय विदेश राज्यमंत्री आनंद शर्मा का कहना है आधिकारिक भाषा बन जाने से संयुक्त राष्ट्र के खर्च में काफी वृद्दि हो जाती है। ऐसे में सदस्य देश को अंशदान बढ़ाना पड़ता है। इस नाते ज्यादातर सदस्य ऐसे किसी प्रस्ताव के प्रति उदासीन रहते हैं । भारत सरकार ने इसके लिए जो खर्च आँका है वह तमिल भाषा के विकास के लिए दी गयी 100 करोड़ रूपए से अधिक नहीं है। 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लक्ष्य हासिल करने के लिए 26 फरवरी 2003 को विदेश मंत्री की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति गठित की थी। बाद में अगस्त 2003 में विदेश राज्यमंत्री की अध्यक्षता में एक उपसमिति तथा सितंबर 2003 में अवर सचिव प्रशासन की अध्यक्षता में एक कोर ग्रुप का गठन हुआ । इसी दौरान हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाए जाने के लिए भारत का पक्ष रखने के लिए एक पक्ष समर्थन दस्तावेज तैयार करने का फैसला भी लिया गया। दस्तावेज तैयार करने का कम एक वरिष्ठ पत्रकार को दिया गया था पर नवंबर 2004 में उनके स्थान पर यह काम दूसरे पत्रकार को दे दिया गया। मई 2005 में समर्थन दस्तावेज विदेश मंत्रालय द्वारा उपलब्ध करायी गयी सूचना सामग्रियों के आधार पर तैयार कर लिया गया। लेकिन सवाल यह है कि दस्तावेज तैयार करने लायक प्रतिभा भी उस विदेश मंत्रालय में नहीं है तो हिंदी की पैरोकारी की क्षमता कहां होगी ? विदेश मंत्रालय के अधिकारी खुद को हिंदी का विद्वान बताकर दुनिया के तमाम देशों का दौरा तो कर लेते हैं पर समर्थन दस्तावेज तैयार करना उनके बस की बात नहीं।
यह उल्लेखनीय है अटल बिहारी वाजपेयी ने 1977 में विदेश मंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को गुंजित किया था। वे जब- जब संयुक्त राष्ट्र बोलने पहुंचे उन्होने हिंदी में ही संवाद कायम किया । अनेक मौके पर संयुक्त राष्ट्र में कई भारतीय नेताओं ने हिंदी में भाषण दिए और भारत के स्थायी मिशन ने इन भाषणों का भाषांतरण अंग्रेजी में करने का जरूरी प्रबंध किया था। डॉ.मनमोहन सिंह भी अगर ऐसा करना चाहते तो उनको कौन रोक सकता था। पर उन्होने ऐसा नहीं किया और उनके ४ साल से अधिक के कार्यकरण से यह साफ है कि उनकी ऐसी कोई इच्छा भी नहीं है।
हालाँकि प्रधानमंत्रीजी इस बात को जानते हैं कि हिन्दी इस योग्य है कि उसे विश्व स्तर पर मान्यता मिले। अगर श्रीमती सोनिया गांधी फर्राटेदार हिंदी बोल रही हैं और अमेरिका जैसे देश अपने लोगों को व्यापार के लिए हिंदी और चीनी भाषाएं सीखने पर जोर दे रहे हैं, तो इसका कुछ अर्थ है। पर हमारा राजनीतिक नेतृत्व ही हिंदी की अहमियत नहीं समझ रहा है। सरकार को लगता है,उसके द्वारा कराए जा रहे हिंदी शिक्षण, छात्रवृत्तियां बांटने, हिंदी की मनमाने तरीके से खरीदी गयी किताबों और पत्रिकाओं और भारतीय मिशनो तथा भारतीय संस्कृति संबंध परिषद जैसी संस्थाओं के प्रयासों से काफी कुछ खुद हो रहा है। विदेशी मिशन 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाने लगे हैं, पर इस अवसर का विशुद्द सरकारीकरण हो होने लगा है। इस बीच में मारीसस में विश्व हिदी सचिवालय का बनना हिंदी के विका स के लिए एक युगांतरकारी घटना जरूर मानी जा सकती है।
भारत में हिन्दी अंग्रेजी के साथ संघ की राजभाषा है। राजभाषा अधिनियम 1963 (संशोधन 1967) की धारा 3 (5) के मुताबिक अंग्रेजी भाषा का प्रयोग तब तक जारी रहेगा जब तक इसको समाप्त क र देने के लिए ऐसे सभी राज्यों के विधानमंडलों द्वारा (जिन्होने हिंदी को अपनी राजभाषा के रूप में नहीं अपनाया है) संकल्प पारित नहीं कर दिए जाते हैं। इन संकल्पो पर विचार के बाद संसद के दोनो सदनो में यह पारित होगा । यह कितना कठिन काम है इसकी सहज कल्पना की जा सकती है।
भारत में आंध्र प्रदेश, अरूणाचल प्रदेश,असम, गोवा, जम्मू कश्मीर, कर्नाटक , केरल, महाराष्ट्र , मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, उड़ीसा, पंजाब, सिक्किम, तमिलनाडु, त्रिपुरा तथा पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों की राजभाषा हिंदी नहीं है,पर पिछली कई जनगणना रिपोर्ट साबित करती है fक देश में हिन्दी सर्वाधिक बोली और समझी जाती है। इसी नाते हिंदी के अखबार या चैनल सबकी पूछ और हैसियत लगातार बढ़ रही है।पूरी दुनिया में 10 जनवरी 2006 को प्रथम विश्व हिंदी दिवस के रूप में आयोजन के बाद से विश्व हिंदी की औपचारिक संकल्पना हमारे सामने आ चुकी है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से देश के हर कार्यालय में हिंदी दिवस 14 सितंबर को हर साल मनाया जाता है। वर्ष 2000 में राजभाषा के रूप में हिंदी ने 50 साल पूरे किए तो भी तमाम समारोह हुए थे और दावे भी पर क्या हुआ यह सब अपनी आंखो से ही देख रहे हैं । लेकिन 21वीं शताब्दी हिंदी और देवनागरी लिपि की ही होगी,इसे कोई रोक नही सकेगा।

1 comment:

राज भाटिय़ा said...

संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बन जाएगी।
पहले भारत की तो भाषा बनाये इस गरीब हिन्दी को, फ़िर संयुक्त राष्ट्र की सोचे,
आप का लेख बहुत ही अच्छा हे, धन्यवाद