Saturday, August 9, 2008

के.सी. निगमजी ,जो ख़बर नहीं बन सके

अरविंद कुमार सिंह

नयी दिल्ली। हिंदी पत्रकारिता की जानी मानी हस्ती और दिल्ली जैसी जगह पर दैनिक जागरण और अमर उजाला जैसे पत्रों को राष्ट्रीय स्तर पर हैसियत और पहचान दिलानेवाले खांटी जर्नलिस्ट कैलाश चंद्र निगम के निधन से पत्रकारिता जगत में भले ही शोक की लहर दिखाई पड़ी हो पर अख़बारों ने उनको ख़बर नही बनाया। उन अख़बारों ने भी जिनको हैसिअत दिलाने में निगमजी की उम्र का एक बड़ा हिस्सा निकल गया था .अपनी बेबाक टिप्पणी तथा आलेखों के लिए चर्चित श्री निगम ने आखिरी सांस तक पत्रकारिता से सरोकार बनाए रखा और हजारों की संख्या में युवा पत्रकारों के लिए तो वह एक अच्छे और सर्वसुलभ मार्गदर्शक और संरक्षक की भूमिका में रहे। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में तो उनकी इतनी पक·ड़ थी fक तमाम मंत्री और मुख्यमंत्री बहुत से जटिल सवालों में उनसे चर्चा और विमर्श करते थे। कई मुख्यमंत्रियों से तो उनके बहुत करीबी रिश्ते रहे पर उन्होने सबके साथ एक सम्मानजनक दूरी बनाए रखी और यश भारती से लेकर तमाम मोटी रकमवाले इनामो के लिए सुयोग्य होने के बावजूद भी लाबिंग नहीं की । शायद यही वजह है fक तमाम लोग बड़े पदों पर पहुंच गए होंगे पर निगमजी जैसी हैसियत और सम्मान वे हासिल नहीं सके.
श्री निगम ने दिल्ली में हिंदी के क्षेत्रीय अखबारों को हैसियत और पहचान दिलायी। वे ९ साल तक दैनिक जागरण और 25 सालों तक अमर उजाला के दिल्ली ब्यूरो प्रमुख रहे। यही दौर इन दोनो अखबारो के वास्तविक विकास और बुनियाद रखने का था। उनको इस दौर में तमाम जगहों से अच्छे पद और सम्मान का आफर मिला पर उन्होने यहीं बने रहना पसंद किया । वे इन दोनो अखबारों की ·ी बुनियाद रखनेवाले चंद लोगों में शामिल रहे हैं,अगर यह कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
80 वर्ष का भरा पूरा जीवन जीनेवाले निगमजी ने संसद की पत्रकारिता करीब 45 साल तक लगातार की । वह विश्वमानव समाचार पत्र के निदेशक भी थे और उन्होने ही इस समाचार पत्र को बहुत गाढ़े समय में संभाला। राजनीति को कवर करनेवाले जानते हैं fक श्री निगम की यूपी के मुख्यमंत्री चंद्रभान गुप्ता, चौ.चरण सिंह, हेमवती नंदन बहुगुणा, पंडित कमलापति त्रिपाठी, नारायण दत्त तिवारी तथा वीर बहादुर सिंह से काफी अच्छे और गहरे संबंध थे। ये सभी उनकी बेबाक लेखनी को सम्मान देते थे। वीर बहादुर सिंह और नारायण दत्त तिवारी से तो इनके बहुत आत्मीय संबंध थे। लेकिन इन गहरे संबंधों को लेकर भी भी उन पर किसी ने उंगली उठाने की हिम्मत नहीं की । पत्रकारिता में किसी से संबंध न रखनेवाले लोगों के खिलाफ राजनीतिक दलों से भी ज्यादा लाबिंग होती है,पर श्री निगम का कोई विरोधी नहीं था।
निगम का संपर्क दायरा इतना व्यापक था fक उनको करीब से जाननेवाले ही इस बात को समझ सकते थे। चाहे दिग्गज राजनेता हों या शिक्षाविद,शीर्ष डॉक्टर हों या वैज्ञानिक तमाम चोटी के लोगों से उनके गहरे संबंध थे। इसके बावजूद उनका रहन सहन हमेशा बहुत सामान्य बना रहा और कभी भी उनके चेहरे पर किसी को मिथ्याभिमान नहीं दिखा। न कभी वह यह डींग हांकते पाए गए fके अमुके उनके संपर्क में है। लेकिन यह खूबी निगमजी में थी ,जो भी उनसे जुड़ा,वह हमेशा उनसे जुड़ा रहा। उनके व्यक्तित्व का यह करिश्माई पहलू था।
निगमजी को अगर हिंदी की क्षेत्रीय पत्रकारिता की शिखर हस्ती माना जाये तो यह गलत नहीं होगा। राष्ट्रीय राजनीति और समाज तथा अर्थव्यवस्था ही नहीं निगमजी की पकड़ तमाम विषयों पर रही है। पर यूपी के तमाम छोटे-छोटे मामलों पर उनको इतनी जानकारी रहती थी की बड़े से बड़े लोगों को भी यूपी को समझने के लिए निगमजी को जरूर याद करना पड़ता था। आईएनएस बिल्डिंग से बाहर निकलते समय वो सबकी खोज खबर संजय से लेते थे । यही नहीं तमाम महत्व की प्रेस कांफ्रेंस में भी वह यथासंभव पहुंचते थे और आखिरी दिनो तक फील्ड में सक्रिय रहे। विभिन्न अखबारों में उनके आलेख और कालम काफी चर्चित रहते थे। उनके राजनीतिके विश्लेषण तथा चुनावी टिप्पणियां इतनी सटीके होती थीं fके बहुत से लोग उनको भविष्यक्तता ही बोलने लगे थे।
उनका पारिवारिक जीवन भी बहुत बहुत सुखी तथा संपन्न पर सादगी भरा रहा। आडंबर कभी भी उनके व्यवहार और आचरण में नहीं दिखा। उनके पांच पुत्रों में चार तो सक्रिय पत्रकारिता में ही हैं। भरा पूरा परिवार और नाती पोते सब कुछ उन्होने देखा और इससे भी बड़ी बात यह fके वह सबके आदर्श बने रहे। उनके पुत्र सुभाष निगम भी अपनी पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं। 1991 में अपनी धर्म पत्नी के निधन से निगमजी टूटे जरूर थे पर उन्होने जल्दी ख़ुद को संभाल लिया । २२ फरवरी २००७ को निगमजी की तवियत दोपहर बाद खराब हुई तो उनके पुत्र सुभाष निगम घर पहुंचे और उनको डा.राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया । पर उस समय टेस्ट कराने के दौरान ही श्री निगम की इहलीला समाप्त हो गयी। उनके निधन की खबर बहुत से लोगों को रात में और अगले दिन में हुई। इसके बाद उनको श्रद्दासुमन अर्पित करनेवालो का तांता सा लग गया। खुद यूपी के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव, केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान, इस्पात राज्यमंत्री डा.अखिलेश दास, उ.प्र.विकास परिषद के अध्यक्ष अमर सिंह,डा। कृष्णवीर चौधरी समेत तमाम नेताओं ने उनके निधन पर शोक जताया और मीडिया में तो जिसने सुना वह शोक में डूब गया। पर धन्य हैं वे अख़बार जो उनको भूल गए। निगमजी एक महान पत्रकार थे और उनको कभी भुलाया नही जा सकता।

2 comments:

bijnior district said...

निगम जी के निधन का सुनकर वास्तव में बहुत अफसोस हुआ।आज एसे व्यक्ति कहां मिलते हैं।

अशोक मधुप

चलते चलते said...

अरविंद जी, निगम जी से मैं एक बार तब मिला था जब आईआईएमसी दिल्‍ली का छात्र था। यह बात 1987-88 की है। आपने लिखा कि पत्रकारिता बिरादरी में उनके निधन से शोक की लहर दिखाई दी लेकिन अखबारों ने कोई खबर नहीं छापी, मुझे लगता है जिन अखबारों की उन्‍होंने सेवा की वे ही उन्‍हें भूल गए होंगे। आज के इस युग में कौन याद करता है। सब अपनी अपनी आपाधापी में भाग रहे हैं। वास्‍तविक पत्रकारिता बहुत पीछे छूट गई।